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कविता

स्साला लोकतंत्र चाहता है

राजकुमार कुंभज


मैं, भूखा हूँ
मुझे रोटी चाहिए
मैं, बेघर हूँ
मुझे घर चाहिए
मैं, बेरोजगार हूँ
मुझे रोजगार चाहिए
मैं, नंगा हूँ
मुझे जरूरी कपड़ा चाहिए
मैं, बीमार हूँ
मुझे जरूरी चिकित्सा चाहिए
मैं, प्यासा हूँ
मुझे पीने का पानी चाहिए
मैं, परतंत्र हूँ
मुझे स्वतंत्रता चाहिए
मैं, अपड़ हूँ
मुझे भाषा चाहिए
इस चूतिए को बाहर निकालो
हमारी जनता होने के काबिल नहीं है ये
स्साला लोकतंत्र चाहता है
और बराबरी भी ?

 


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